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ट्रंप क्या चुनाव भी लड़ पाएंगे?

ट्रंप क्या चुनाव भी लड़ पाएंगे?

श्रुति व्यास
क्या कॉलोराडो के फैसले से डोनाल्ड ट्रंप की व्हाईट हाऊस की राह कठिन हो गई है? एक घटनाक्रम में, जो चौंकाने वाला है भी और नहीं भी, कॉलोराडो ने अपने सर्वोच्च न्यायालय के ज़रिये डोनाल्ड ट्रंप के राज्य में अगले वर्ष का राष्ट्रपति चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगयाहै। राज्य के सर्वोच्च न्यायाधीशों का यह निर्णय अमरीका के चुनावी इतिहास में अभूतपूर्व है। उनके फैसले के अनुसार 6 जनवरी को केपीटोल में बलपूर्वक घुसने के घटनाक्रम के दौरान ट्रंप का व्यवहार 14वें संशोधन के तीसरे अनुच्छेद का उल्लंघन है एवं उन्हें राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने के कारण चुनाव लडऩे का हक़ नहीं है। ट्रंप के वकीलों ने इसे तुरंत चुनौती दी।

अब इस मामले की सुनवाई अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय में होगी और उसका फैसला आने तक कॉलोरोडो में ट्रंप की उम्मीदवारी वैध रहेगी। आखिर यह 14वां संशोधन क्या है जो ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की आकांक्षा में बाधक बन गया है? 14वां संशोधन गृहयुद्ध के बाद कॉन्फेडरेट सांसदों को कांग्रेस में आने से रोकने के लिए लागू किया गया था। राष्ट्रपति चुनाव में कभी इसका उपयोग नहीं किया गया। अमेरिका और सारी दुनिया के बहुत से लोगों को कुछ समय के लिए ही सही, मगर हर्षित और रोमांचित करने वाली इस खबर से एक बड़ा ‘लेकिन’ जुड़ा हुआ है। पहली बात तो यह है कि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में कंजरवेटिवों के जबरदस्त बहुमत के चलते संभावना यही है कि ट्रंप का रास्ता रोकने का कॉलोराडो का प्रयास सफल नहीं हो सकेगा। हालांकि यह भी हो सकता है कि अन्य राज्य कॉलोराडो की राह पर चलकर ट्रंप के प्रायमरीज में भाग लेने पर रोक लगा दें।

दूसरे, भले ही ट्रंप को धक्का पहुंचा हो परंतु अमरीका की जनता उन्हें समर्थन देने के मूड में है।‘न्यूयार्क टाईम्स’ द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार आधे से ज्यादा अमेरिकी इजराइल-हमास युद्ध में राष्ट्रपति जो बाइडन की भूमिका से नाखुश हैं। सर्वे में 57 प्रतिशत लोगों ने कहा कि बाइडन ने युद्ध के मामले में जो किया वे उसका समर्थन नहीं करते। एक अन्य सर्वे के अनुसार, 46 प्रतिशत मतदाताओं का कहना है ट्रंप इस पूरे मसले को बेहतर ढंग से हैंडल करते। केवल 38 प्रतिशत मतदाता ट्रंप की तुलना में बाइडन पर अधिक भरोसा करने को तैयार हैं। कुल मिलाकर चुनावी दौड़ में ट्रंप, बाइडन से दो प्रतिशत आगे हैं। यह अंतर बहुत ज्यादा नहीं है परंतु इस तथ्य के प्रकाश में कि ट्रंप के खिलाफ 91 आपराधिक मामलों में कार्यवाही चल रही है, यह मामूली सा अंतर भी निराशा पैदा करने वाले है।

और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप अपने लिए निगेटिव को अपने लिए सुपर पॉजिटिव में बदलने की कला के चैंपियन हैं। ट्रंप ने एक नैरेटिव बनाया है जिसके अनुसार वे जोरो (एक काल्पनिक चरित्र जो हमेशा मॉस्क पहने रहता है और आम लोगों की मदद करता है) की तरह हैं, जिस पर डीप स्टेट हमलावर है। यह नैरेटिव बेहूदा और बकवास है परंतु ऐसा लगता है कि बड़ी संख्या में ट्रम्प समर्थक उसे सही मानते हैं। ट्रंप पर जितना कीचड़ उछाला जाता है उनकी छवि उतनी ही निखरती जाती है और रिपब्लिकन समर्थकों में उनकी लोकप्रियता और बढ़ती जाती है। एक भी प्राइमरी में हिस्सा न लेने के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने की राह में वे सबसे आगे हैं।

एक और बात। ट्रंप की रूचि अदालतों में जीत हासिल करने में नहीं हैं। शुरू से ही उनके वकीलों की कोशिश यही रही है कि मुकदमे ज्यादा से ज्यादा लंबे खिंचें और चुनाव तक किसी मामले में कोई प्रगति न हो। हालिया घटनाक्रम ने अमेरिका के चुनावों को और रोमांचक, और तनावपूर्ण बना दिया है। अभी भी कुछ अमरीकियों को यह उम्मीद है, यह भरोसा है कि नए साल में कोई चमत्कार होगा और कानून के लंबे हाथ ट्रंप को वहां पहुंचा देंगे जहां उन्हें होना चाहिए। और फिर 2024 का चुनावी सीन एकदम बदल जाएगा।

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