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मुख्यमंत्री धामी ने विभिन्न स्थानों के नाम में की परिवर्तन की घोषणा
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दावे भी तो ऐसे

दावे भी तो ऐसे

यह धारणा बनी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने अंग्रेजी के अक्षर की शक्ल हासिल कर ली है। एसबीआई की इस रिपोर्ट का मकसद इसी धारणा को तोडऩा मालूम पड़ता है। इसके लिए कई हवाई तर्क इसमें शामिल किए गए हैँ।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट ऐसे दावे किए हैं, जिनकी तुलना सिर्फ हवा में उड़ाए गए गुब्बारों से की जा सकती है। एसबीआई का दावा है कि भारत में हाल के सालों में आर्थिक असमानता घटी है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि हर क्षेत्र में खुशहाली का आलम है। एसबीआई ने असमानता का अनुमान लगाने के लिए आयकर डेटा का इस्तेमाल किया है। और इन आंकड़ों के आधार पर सारे देश की माली हालत का अंदाजा लगा लिया गया है। जबकि देश में केवल आठ करोड़ लोग आयकर रिटर्न फाइल करते हैं। उनमें से भी चार करोड़ शून्य रिटर्न फाइल करते हैं- यानी वे एक पैसा इनकम टैक्स नहीं देते। तो बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो वास्तव में इनकम टैक्स दे रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या भारत की कुल आबादी में सिर्फ लगभग दो फीसदी बैठती है। एसबीआई के विशेषज्ञों ने सिर्फ उनके आधार पर आर्थिक गैर-बराबरी के घटने का दावा कर दिया गया है।

जबकि इनकम टैक्स डेटा के आधार पर आर्थिक गैर-बराबरी के बारे में शायद ही कुछ कहा जा सकता है। इसलिए कि यह डेटा कुल आबादी के बहुत छोटे हिस्से से संबंधित है। पहली बात तो इनसे धनी लोगों की ब्लैक मनी से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती। दूसरी तरफ आबादी के लगभग 95 प्रतिशत हिस्से के बारे में इनसे कोई सूचना नहीं मिलती। कुल आबादी की आमदनी और उपभोग के आंकड़ों के आधार पर हुए कई हालिया अध्ययनों से देश में लगातार बढ़ती जा रही विषमता की पुष्टि हुई है। उनके आधार पर ही यह धारणा बनी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने अंग्रेजी के अक्षर की शक्ल हासिल कर ली है। एसबीआई की इस रिपोर्ट का मकसद इसी धारणा को तोडऩा मालूम पड़ता है। इसके लिए कई हवाई तर्क इसमें शामिल किए गए हैँ। मसलन, एमएसएमई (सूक्ष्म- लघु- मध्यम उद्यम) क्षेत्र में कारोबार इसलिए घटा है, क्योंकि वैसी कंपनियां ब्रांड चेन के माध्यम से बड़ी कंपनियां में बदल गईं हैं। और यह कि कि लोग ग्रामीण इलाकों में दोपहिया वाहनों को छोडक़र कार खरीद रहे हैं, इसलिए दोपहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है।

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