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तानाशाही की झलक

तानाशाही की झलक

ओमप्रकाश मेहता
भारत की आजादी के बाद से अब तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कई विवादस्पद दौरों से गुजरा है, जिसके तहत् इस संगठन को प्रतिबंधात्मक दायरे से भी गुजरना पड़ा है। खैर, वह सब कांग्रेसी शासन कालों के दौरान हुआ, किंतु आज जबकि पिछले एक दशक से केन्द्र में संघ समर्थक भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, तो संघ का दबी जुबान आरोप है कि संघ को सताने की स्पर्द्धा में मोदी सरकार ने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है और इस त्रासदी का मुख्य आधार प्रधानमंत्री व उनकी अपनी टोली द्वारा संघ की उपेक्षा है, अपनी इस त्रासदी का जिक्र करने के लिए केरल में संघ ने अपनी तीन दिवसीय समन्वय बैठक बुलाई जिसमें सभी उपस्थिततों को संघ प्रमुख की बातों पर गौर कर निर्णय लेने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन भाजपा संगठन के प्रमुख जगत प्रकाश नड्डा ने अचानक वहां पहुंच कर, ‘‘मीडिया मैनेंज’’ कर अपनी आवाज को बुलंदगी के साथ पेश किया और बैचारे संघ प्रमुख की आवाज के साथ उनके प्रयासों पर पानी फैर दिया।

संघ की पिछले कुछ दिनों की भूमिका को देखकर प्रधानमंत्री व उनके सहयोगी सतर्क हो गए थे और उन्होंने इसी रणनीति के तहत् भाजपाध्यक्ष को संघ की केरल बैठक में भेजकर यह सब किया। वर्ना संघ के इस सम्मेलन के पहले दिन जो संघ प्रमुख ने तेवर दिखाए थे, वे ही तेवर यदि तीनों दिन पूरे सम्मेलन में जारी रहते तो वह भाजपा सत्ता व संगठन के लिए ठीक संकेत नही होते, इसीलिए मीडिया को मैनेज कर भाजपा प्रमुख की बात को जोर-शोर से उठाया गया और संघ प्रमुख की बातों को दबा दिया गया।

देश में अब तक कायम हुई भाजपा या पूर्व जनता पार्टी की सरकारों में यह पहली बार हो रहा है, जब संघ अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहा है, इससे पूर्व अटल जी के प्रधानमं.त्रित्व काल में भी अटल-अड़वानी ने संघ को प्रमुख माना था तथा ये नेता समय-समय पर संघ पदाधिकारियों से सलाह-मशवरा करते रहते थे, किंतु अब संघ को शायद भाजपा सरकार के चलते पहली बार उपेक्षा के दौर से गुजरना पड़ रहा है। इसीलिए अब वह जमाना लद गया, जब सत्ता प्रमुख संगठन प्रमुख से मिलने या मशवरे के लिए जाया करता था, आज तो स्थिति यह है कि संघ प्रमुख प्रधानमंत्री से भेंट का समय मांगते है और वह भी कई दिनों तक नही मिल पाता, इसीलिए अब संघ ने भी दबी जुबान मोदी व उनकी सरकार पर सख्त टिप्पणियां शुरू कर दी है।

संघ ही नही अब तो भाजपा के वरिष्ठ नेता भी दबी जुबान यह कहने में कोताही नही बरतते कि मोदी जी अब बहुत बदल गए है, अब वे 2014 वाले मोदी जी नही रहे और इसी मसले को लेकर सत्तारूढ़ दल व उसके जनक संगठन (संघ) में अच्छी-खासी चर्चा है, जो मोदी जी के चौथे कार्यकाल के लिए शुभ नही मानी जा रही, संघ-भाजपा तथा उसके संगी-साथी मोदी जी के उन तैवरों को ‘‘तानाशाही की झलक’’ बता रहे है, यह स्थिति भाजपा में सिर्फ केन्द्र तक ही सीमित नही है, बल्कि भाजपा शासित राज्यों के सत्ता संगठनों में भी इसकी झलक देखने को मिल रही है। इस स्थिति को लेकर भाजपा के हितचिंतकों व सहयोगियों में भी अच्छी खासी चिंता है व इस स्थिति में भविष्य को लेकर बैचेनी है।
इस प्रकार भाजपाध्यक्ष ने संघ के केरल सम्मेलन में पहुंच कर चाहे संघ का गुस्सा शांत करने का प्रयास किया हो, किंतु अब जब यह गुस्सा देश के जिलों व तहसील स्तर तक पहुंचने की तैयारी कर रहा है, तब नड्डा जी कहां-कहां अपनी सफाई पेश करने जायेगें?

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